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अध्यात्म की पहली सीढ़ी - तौबा... First Step In The Path Of Spirituality

[caption id="attachment_11317" align="aligncenter" width="425"]अध्यात्म की पहली सीढ़ी - तौबा... First Step In Ladder of Spirituality, in Hindi अध्यात्म की पहली सीढ़ी - तौबा... First Step In The Path Of Spirituality[/caption]

एक बार की बात है एक स्त्री (women) दर्पण (mirror) में अपना मुख (face) देख रही थी और देखकर उसने दर्पण (mirror) फेंक दिया. दूसरा दर्पण (mirror) लाई उसमे भी अपना मुख देखा और इस दर्पण (mirror) को भी फेंक दिया. इस प्रकार दो दर्पण (mirror) और तोड़ दिए. दूसरी स्त्री (women) वहां खाड़ी थी वह उससे बोली कि बहन (sister) अगर तुम्हारे पास दर्पण (mirror) अधिक है तो मुझे दे दो इस प्रकार फेंक क्यों रही हो.


पहली स्त्री बोली कि बहन यह दर्पण (mirror) बड़े बुरे (bad) हैं. इसमें चेहरा गन्दा (dirty) दिखाई दे रहा है. इसीलिए मैं इनको फेंक रही हूं. दूसरी स्त्री ने कहा देखो बहन ऐसा करो कि साबुन (soap)और पानी से अपना चेहरा धो (face wash) आओ. वह स्त्री समझदार (brainy) थी, चली गई, चेहरा धोकर आई और फिर जब चेहरा दर्पण (mirror) में देखा तो प्रसन्न (happy) हो गई.

सच पूछिए तो हम सबका व्यवहार (behavior) ऐसा ही है जैसा पहली स्त्री (women) का था. हम भी संसार में हर मनुष्य (humans) में अवगुण (demerits/defect) देखते है और दुखी (sad) रहते है. यह मनुष्य का स्वभाव (nature) ही है कि वह अपने तो गुण (quality) देखता है परन्तु (but) दुसरे के अवगुण (demerits/defect) देखता है.

लेकिन जब वह साधना (practice) प्रारम्भ (start) करता है, उसका वृत्तियाँ (tendencies) अंतमुर्खी (end) होने लगती है, मन थोड़ा शांत होने लगता है जब वह अपने अन्दर देखता है तो पाता है कि उसके अन्दर अनेक अवगुण (demerits./defect) भरे हुए है और जब वह अवगुण (demerits./defect) देखेगा तो उनको दूर करने की कोशिश भी करेगा. यह संसार तो मानो दर्पण (mirror) है जो आपके अन्दर है वही दूसरों में दिखाई देता है. इस बात को और समझने के मिये एक प्रसंग (incident) और याद आ रहा है.

 

शाम (evening) का समय था एक गांव (village) के किनारे एक बुड्ढा (old man) जा रहा था. उसको ठोकर लगी और वह गिर गया. गिरते ही बेहोश (senseless) हो गया. अँधेरा तो था ही. वहां से थोड़ी देर में झूमता हुआ एक शराबी (drunker) निकला. वह उसे देखकर बोला कि अरे देखो इसने अधिक (more) पि ली है. इसीलिए बेहोश (senseless) हो गया. मैं तो अभी होश (senses) में हूं. और आगे चला गया.

कुछ और समय निकला, अँधेरा अधिक हुआ तो एक चोर (thief) उधर से निकला, वह चोरी (theft) करके आ रहा था. वह मन ही मन कहने लगा कि देखो मेरे जैसा ही कोई चोर है परन्तु (but) वह ठोकर खाकर गिर गया अब इसके पीछे पुलिस (police) और आदमी आते होंगे, मैं तो यहाँ से भाग जाऊं. वो भी आगे चला गया तीसरी बार एक भगवान (god) का भक्त (devotee) आया उसने उसको देखा तो बोला कि देखो यह भी कोई भक्त (devotee) होगा क्योंकि सिर के ऊपर उसके हाथ जुड़े हुए है. यह उन्ही के ख्याल में होगा और उसने उस बुड्ढे (old man) को उठाया उसकी सेवा की उसको होश में लाया. तो तीनों मनुष्यों ने जो उनके अन्दर था वही उसमें देखा.

यही बात है कि जो हमारे अन्दर (inner) होता है वही हम दूसरों में देखते है. इसलिए अध्यात्म (spirituality) में तभी समझना चाहिए कि हमने कदम रख लिया जब हमको अपने अवगुण (demerits/defect) दिखाई देने लगें. जब हमें अवगुण दिखाई देने लगेंगे तभी हम उन्हें दूर करने की कोशिश करेंगे और अपना हृदय निर्मल बना सकेंगे. 

अध्यात्म (spirituality) की पहली सीढ़ी तौबा है. तौबा उस बात को कहते है कि हम किसी बुरे काम (bad work) को कर रहे हों, उसके लिये कसम खाने कि अब से यह काम नहीं करेंगे. हमें दूसरों में अवगुण (demerits) नहीं देखने चाहिए. हमें भी अध्यात्म मार्ग (spirituality path) में आगे बढ़ने के लिए अपने अवगुणों को देखकर उन्हें दूर करने का उपाय करना चाहिए.

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