थोड़ा समय अपने बच्चों के लिए भी - Spend some time with your children in Hindi, apne baccho ko samay de, baccho ko samay dena bahut jaruri hai taki ko bigade nahi.
आपने कभी सोचा है , सुबह होने पर जब आप बिस्तर छोड़ते है तोअपके पास अगली सुबह तक के लिए कितना समय होता है ! पुर 24 घंटे , जी हाँ , अपने देश , समाज , परिवार एवं खुद के लिए आपके पर पुरे 24 घंटो का समय होता है . उन 24 घंटो में आप कितने घंटों का सदुपयोग कर पाते हैं और कितना समय आप नष्ट कर देते हैं , हमारा विषय ये नहीं है . मुख्य बात तो यह है कि आप इस समय में से कितना समय अपने बच्चों को दे पाते हैं .
इस प्रश्न के कई उत्तर हो सकते हैं , जैसे -
' बच्चे बड़े हो गए हैं . अब उनके लिए समय निकालने की क्या जरुरत है . ' ये थे कुछ माता-पिता के उत्तर . मैं इन उत्तरों से बिलकुल सहमत नहीं हूं . बच्चे आपके हैं , आपनेन उन्हें पैदा किया है . उनका समस्त उत्तरदायित्व आप पर है . आप उन्हें क्या बनाना चाहते हैं , आप उन्हें किस रूप में देखना चाहते हैं , यह आपको देखना है . भले ही आपके पास समय न हो किन्तु उन्हें तो समय देना ही पड़ेगा .
आपको उनके साथ खेलना भी है .
आपको उनके साथ मनोरंजन भी करना है .
आपको उनसे बातें करनी हैं , उनकी योजनाओं को समझना है और उन्हें अच्छी शिक्षा भी आपको ही देनी है .
उनकी आज की ही नहीं , आने वाले कल के जिम्मेदारी भी आप पर है . उन्हें दुसरे लोगों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना है और किस प्रकार सफलता के शिखर पर पहुँचाना है , यह भी आप ही को देखना है . वे सब उत्तरदायित्व यूं ही पुरे न होंगे . इसके लिए चाहिए समय और वह समय आपको देना ही पड़ेगा . अच्छे माता-पिता इन उत्तरदायित्वों को समझते हैं और अपने बच्चों को पूरा समय देते हैं .
श्रीमान सरमा अपने office से थके-हरे लौटते हैं . घर आते ही बच्चों के साथ चाय पीते हैं . बच्चों ने पुरे दिन क्या किया , क्या उन्होंने अपनी कक्षा में कोई नया friend बनाया ? आज उन्होंने TV पर कौन सा serial देखा और वह उन्हें क्यों पसंद आया ? उन्होंने कौन सी खेल देखा , यह सब वे अपने बच्चों से पूछ्ते हैं और फिर वह उन्हें लेकर घुमने निकाल पड़ते हैं .
खाने के बाद वे बच्चों से स्कूल-संबंधी कुछ बातें करते हैं . उन्हें कोई शिक्षाप्रद कहानी सुनते हैं और सो जाते हैं .
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थोड़ा समय अपने बच्चों के लिए भी - Spend some time with your children in Hindi, apne baccho ko samay de, baccho ko samay dena bahut jaruri hai taki ko bigade nahi.
इसकी विपरीत कुछ माता-पिता ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों को बिलकुल समय नहीं दे पाते .
उनकी अपनी समस्याएं ही काफी होती हैं .
ऐसे में अपने बच्चों की वे बिलकुल भूल जाते हैं . बच्चे उनके स्वभाव को जानते हैं , इसलिए प्राय दूर ही रहते हैं . और यदि बच्चा भूल से उनके पास चला भी जाता है तो उनका एक ही उत्तर होता है - ' तंग न करो . '
बच्चे के ह्रदय को चोट लगती है .
कितनी आशाएं होती है उसे आपसे . एक आप ही तो उसके अपने हैं और आपके पास भी उसके लिए समय नहीं है . बच्चा समझ नहीं पाता है कि ऐसे में वह अपनी उलझन , अपनी समस्या किसके सामने रखे . देखने में आया है कि माता-पिता की ओर से उपेक्षित ऐसे बच्चे प्राय एकाकी (alone) हो जाते हैं . Time मिलेगा तो न जाने किन विचारों में खोएं वे चुपचाप बैठे रहेंगे .
श्रीमती आहूजा को अपने बच्चे से यही शिकायत है . बेटा 8 वर्ष का हो चूका है . पढाई में तेज है . उसकी आदत है कि वो अपना homework पूरा करते ही या तो छत पर चला जाता है या फिर सामने वाले park में चुपचाप बैठ जायेगा . श्रीमती आहूजा समझती है कि उसके बेटे को कोई रोग लग गया है . एक दिन मुलाकात हुई तो अपने बेटे के बारे में बताने लगी . पूरी बातें सुनने के बाद मैंने उनसे प्रश्न किया -
' आप तो दिन भर घर पर ही रहती हैं ? '
' नहीं , घर तो मैं कभी नहीं रुक पति , काम ही कुछ ऐसा है सुबह घर से निकलती हूं और शाम को देर से लौटती हूं . '
' क्या करती हैं ? '
' समाजसेविका हूं .'
' बच्चे को कितना समय दे पाती हैं ? '
' सच पूछिए तो बिलकुल भी नहीं , मेरे पति भी देर से ही घर लौटते हैं . हमारे पास इतना भी समय नहीं होते कि बच्चे से दो बातें भी कर सकें . '
' आपका बच्चा अपने-आपको सबसे अलग-थलग और अकेला महसूस करता है इसलिए वह एकाकी हो गया है . उसके मन में तेजी से ये भावना भारती जा रही है कि कोई उसका नहीं है अथवा माता-पिता को उसकी बिलकुल परवाह नहीं है . आपको उसके मन से ये भावना निकालनी होगी . '
श्रीमती आहूजा ने इस सुझाव पर अमल किया और फिर एक दिन बताया कि उनके बेटे का स्वभाव पूरी तरह से बदल गया है .
यह सच इसलिए हुआ था , क्योंकि श्रीमती आहूजा ने प्रति दिन दो घंटे समय अपने बच्चे को देना आरम्भ कर दिया था . इसके पश्चात् बच्चे के मन में न तो असुरक्षा की भावना रही न ही उसने अपने-आपको अकेला महसूस किया .
आपने कभी सोचा है , सुबह होने पर जब आप बिस्तर छोड़ते है तोअपके पास अगली सुबह तक के लिए कितना समय होता है ! पुर 24 घंटे , जी हाँ , अपने देश , समाज , परिवार एवं खुद के लिए आपके पर पुरे 24 घंटो का समय होता है . उन 24 घंटो में आप कितने घंटों का सदुपयोग कर पाते हैं और कितना समय आप नष्ट कर देते हैं , हमारा विषय ये नहीं है . मुख्य बात तो यह है कि आप इस समय में से कितना समय अपने बच्चों को दे पाते हैं .
इस प्रश्न के कई उत्तर हो सकते हैं , जैसे -
' बच्चे बड़े हो गए हैं . अब उनके लिए समय निकालने की क्या जरुरत है . ' ये थे कुछ माता-पिता के उत्तर . मैं इन उत्तरों से बिलकुल सहमत नहीं हूं . बच्चे आपके हैं , आपनेन उन्हें पैदा किया है . उनका समस्त उत्तरदायित्व आप पर है . आप उन्हें क्या बनाना चाहते हैं , आप उन्हें किस रूप में देखना चाहते हैं , यह आपको देखना है . भले ही आपके पास समय न हो किन्तु उन्हें तो समय देना ही पड़ेगा .
आपको उनके साथ खेलना भी है .
आपको उनके साथ मनोरंजन भी करना है .
आपको उनसे बातें करनी हैं , उनकी योजनाओं को समझना है और उन्हें अच्छी शिक्षा भी आपको ही देनी है .
उनकी आज की ही नहीं , आने वाले कल के जिम्मेदारी भी आप पर है . उन्हें दुसरे लोगों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना है और किस प्रकार सफलता के शिखर पर पहुँचाना है , यह भी आप ही को देखना है . वे सब उत्तरदायित्व यूं ही पुरे न होंगे . इसके लिए चाहिए समय और वह समय आपको देना ही पड़ेगा . अच्छे माता-पिता इन उत्तरदायित्वों को समझते हैं और अपने बच्चों को पूरा समय देते हैं .
श्रीमान सरमा अपने office से थके-हरे लौटते हैं . घर आते ही बच्चों के साथ चाय पीते हैं . बच्चों ने पुरे दिन क्या किया , क्या उन्होंने अपनी कक्षा में कोई नया friend बनाया ? आज उन्होंने TV पर कौन सा serial देखा और वह उन्हें क्यों पसंद आया ? उन्होंने कौन सी खेल देखा , यह सब वे अपने बच्चों से पूछ्ते हैं और फिर वह उन्हें लेकर घुमने निकाल पड़ते हैं .
खाने के बाद वे बच्चों से स्कूल-संबंधी कुछ बातें करते हैं . उन्हें कोई शिक्षाप्रद कहानी सुनते हैं और सो जाते हैं .
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थोड़ा समय अपने बच्चों के लिए भी - Spend some time with your children in Hindi, apne baccho ko samay de, baccho ko samay dena bahut jaruri hai taki ko bigade nahi.
इसकी विपरीत कुछ माता-पिता ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों को बिलकुल समय नहीं दे पाते .
उनकी अपनी समस्याएं ही काफी होती हैं .
ऐसे में अपने बच्चों की वे बिलकुल भूल जाते हैं . बच्चे उनके स्वभाव को जानते हैं , इसलिए प्राय दूर ही रहते हैं . और यदि बच्चा भूल से उनके पास चला भी जाता है तो उनका एक ही उत्तर होता है - ' तंग न करो . '
बच्चे के ह्रदय को चोट लगती है .
कितनी आशाएं होती है उसे आपसे . एक आप ही तो उसके अपने हैं और आपके पास भी उसके लिए समय नहीं है . बच्चा समझ नहीं पाता है कि ऐसे में वह अपनी उलझन , अपनी समस्या किसके सामने रखे . देखने में आया है कि माता-पिता की ओर से उपेक्षित ऐसे बच्चे प्राय एकाकी (alone) हो जाते हैं . Time मिलेगा तो न जाने किन विचारों में खोएं वे चुपचाप बैठे रहेंगे .
श्रीमती आहूजा को अपने बच्चे से यही शिकायत है . बेटा 8 वर्ष का हो चूका है . पढाई में तेज है . उसकी आदत है कि वो अपना homework पूरा करते ही या तो छत पर चला जाता है या फिर सामने वाले park में चुपचाप बैठ जायेगा . श्रीमती आहूजा समझती है कि उसके बेटे को कोई रोग लग गया है . एक दिन मुलाकात हुई तो अपने बेटे के बारे में बताने लगी . पूरी बातें सुनने के बाद मैंने उनसे प्रश्न किया -
' आप तो दिन भर घर पर ही रहती हैं ? '
' नहीं , घर तो मैं कभी नहीं रुक पति , काम ही कुछ ऐसा है सुबह घर से निकलती हूं और शाम को देर से लौटती हूं . '
' क्या करती हैं ? '
' समाजसेविका हूं .'
' बच्चे को कितना समय दे पाती हैं ? '
' सच पूछिए तो बिलकुल भी नहीं , मेरे पति भी देर से ही घर लौटते हैं . हमारे पास इतना भी समय नहीं होते कि बच्चे से दो बातें भी कर सकें . '
' आपका बच्चा अपने-आपको सबसे अलग-थलग और अकेला महसूस करता है इसलिए वह एकाकी हो गया है . उसके मन में तेजी से ये भावना भारती जा रही है कि कोई उसका नहीं है अथवा माता-पिता को उसकी बिलकुल परवाह नहीं है . आपको उसके मन से ये भावना निकालनी होगी . '
श्रीमती आहूजा ने इस सुझाव पर अमल किया और फिर एक दिन बताया कि उनके बेटे का स्वभाव पूरी तरह से बदल गया है .
यह सच इसलिए हुआ था , क्योंकि श्रीमती आहूजा ने प्रति दिन दो घंटे समय अपने बच्चे को देना आरम्भ कर दिया था . इसके पश्चात् बच्चे के मन में न तो असुरक्षा की भावना रही न ही उसने अपने-आपको अकेला महसूस किया .
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