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तुम के वट वृक्ष (banyan tree) की ओर देखो, एक राई (mustard) के बराबर किसी बीज (seed) में छुपा बैठा था, पृथ्वी ने सहायता की, जल, अग्नि (fire), वायु (air), आकाश ने उसे बढ़ने का अवकाश (time) दिया, कितना विशाल हो गया. मनुष्य में भी अनंत विशेष गुण (infinite special qualities) हैं, यदि उसे ठीक अवकाश (time) मिलता चला जाए तो वह अनेक ब्रह्मांडो (universe) से भी बड़ा हो सकता है, यह अनंत उसके संकेत (signal) पर चल सकता है, वह अनंत में मिल सकता है. एक बार जन्म (birth) तो उसे भले ही पशुओं (animals) की भांति लेना पड़े, परन्तु (but) आगे वह बंधनों (bondage) से परे भी हो सकता है और अपने ही नहीं अनेक लोगों को भी वह भव बन्धनों से मुक्त (free) करा सकता है.
अंधकार (darkness) कुछ है नहीं, प्रकाश (light) का न होना ही अंधकार है, ऐसा ही अवगुणों की कोई स्थिति (medium) नहीं है, जिस दिन तुम ज्ञान की ओर जाओगे, अज्ञान रहेगा ही नहीं.
इसके लिए तुम्हे कुछ करना नहीं होगा, बस इतना अवश्य (sure) करना होगा कि किसी संत (sage) के पास जाने लगो फिर ये अवगुण तुम्हारे अन्दर से ऐसे भाग जायेंगे, जैसे प्रकाश के होने पर उल्लू (owl) भाग जाते हैं.
मनुष्य (human) और ईश्वर (god) अत्यंत निकट है, बिच में एक बाल (hair) भर का अंतर (difference) है, जो इस अंतर को निकाल पाते हैं, वह उस अनंत शक्ति में मिलकर पूर्ण शक्तिमान (powerful) बन जाते हैं, परन्तु इस बीच की दुरी को तुम नहीं निकाल सकते. यह कोई संत (sage) ही निकालते है और तब जीव और ईश्वर एक हो जाते हैं.
जैसे सूर्य (sun) से ही ये प्रकाश (light) है, सूर्य डूबने पर धुप कहां ? ऐसे ही यह सब आत्मा (soul) से है, आत्मा ही हमारा प्राण (life) है, आत्मा ही सब कुछ है. अभी जो आपको ये सब अच्छा लग रहा है, आत्मा से ही लग रहा है.
जैसे एक बालक अपनी माँ के साथ बाजार (market) गया, बहुत-सी चीजें खरीदीं, थेला (bag) भर लिया, बहुत प्रसन्न. लेकिन कदाचित (rarely) उस भीड़ में माँ से बिछड़ जाए, तो सब चीजें बेकार, किसी से लगाव नहीं, किसी से प्रेम नहीं. इसलिए यह सब ईश्वर से ही प्रिय है, आत्मा ही आत्मा को चाहता है.
तुम देखते हो लोग गंगाजी से जल (water) कांच की शीशियों (bottle) में भरकर लाते हैं. उसमें तथा गंगाजी के जल में कोई अंतर (difference) नहीं है. हाँ, पर अंतर (difference) यह है कि वह जल (water) उस धारा से अलग हो गया है. वह एक शीशी (bottle) में है. ऐसे ही हम एक शरीर (body) में आ गये हैं. अपने को छोटा और नाचीज (useless) समझने लगे हैं. यदि किसी प्रकार का ख्याल को छोड़ दें तो आत्मा में मिलकर आनन्द ले सकते हैं.
जब ज्ञान हो जाता है तो मनुष्य पिंजड़े (cage) से निकाल जाए. नासमझी को ही दुखो का मूल (prime) कहा है और सत्पुरुषों से प्राप्त ज्ञान से ही वह जीवन मुक्त होता है.
काँटों से निकलना तो संभव (possible) है, जल्दी हो जाये, परन्तु फूलों (flower) से निकलना बहुत कठिन हो जाता है. इससे तो गुरु कृपा से ही प्राणी निकल पता है.
जब तक जीव में अपनी ही शक्ति है, अपना ही ज्ञान है, वह अल्पज्ञ (little knower)है, अल्प शक्ति वाला है, इसलिए कोई जान भी नहीं सकता. बस, जिस पर वह आत्मा कृपा करे, वही आत्मस्वरूप हो जाता है. ऐसी शक्ति (energy) एक तिनके को भी मिल जाए तो वह उस महान सूर्य से भी अधिक प्रकाशवान हो जाए जो महाप्रबल के समान उदय होकर सब सृष्टि को जला दे.
उस शक्ति को ऐसे समझो जैसे पानी की एक बूँद (drop) किसी प्रकार समुद्र में बरस जाए, समुद्र को पा जाए. तुम यह भी जानते हो कि एक शक्ति सम्पन्न वस्तु से दूसरी वस्तु में शक्ति पहुंचाई जा सकती है. एक जलते हुए दीपक से हजार दीपक जला लो, फिर जब सब जल जाए तो सबको ज्योति में कोई अंतर नहीं रहता.
फिर यह भी जानते हो कि लकड़ी (wood) में अग्नि है, परन्तु सहस्त्रों वर्ष (many years) पड़ी रहे, जल नहीं सकती. हाँ , यदि वह जलती लकड़ी के सहारे हो जाए तो वह भी अग्नि (fire) बन सकती है. ऐसे ही मनुष्य के अन्दर ज्ञान (knowledge) है, परन्तु वह ज्ञान अपने आप प्रकट (visible) नहीं होगा. कोई ज्ञानी पुरुष मिल जाए, उसका संग करे तो उसके अन्दर का भी ज्ञान प्रकट (visible) हो सकता है, और आज तक ऐसा ही हुआ है.
सूर्य छुप जाता है तो घना अंधकार हो जाता है, परन्तु भगवान ने उस अँधेरे को दूर करने के लिए चन्द्रमा (moon) और तारों (stars) को बनाया है. ये नहीं होते तो महा अंधकार (great darkness) होता. ऐसे ही संत भी एक ज्ञान के प्रकाश-पुंज हैं. जगत में यदि संत न हों तो भयानक अज्ञान फैल जाए, दुनिया का ठहरना कठिन हो जाये. जैसे वृक्ष प्राणप्रद वायु (oxygen) देकर सबके प्राणों की रक्षा करते हैं, ऐसे ही संत भी मनुष्यों के ह्रदय में आत्मज्ञान भेजते रहते हैं.
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