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आदमी बने रहने ठीक (fine) है. कुछ और बनने में बड़ा खतरा (danger) है. यदि हमने किसी नाम की तख्ती (name plate) लटका ली और उसके अनुरूप (according) आचरण (manner) नहीं बन पड़ा तो सत् स्वरूप हमारी आत्मा (true form of soul) हमें कोसेगी. वह हमें मिथ्याचारी (hypocrisy/mischievous) कहेगी.
अन्दर से कुछ और बाहर से कुछ यह बहुत मिथ्याचार (hypocrisy/mischievous) है. बहुत बड़ा पाप (guilt) है. सत् (truth) और धर्म यह दोनों पर्यायवाची शब्द (synonym words) है. धर्म (religious) न कोई पंथ (creed) है न कोई संप्रदाय (community). यह कोई बाहरी आडंबर (external pomp) भी नहीं. इसका सीधा सम्बन्ध अन्तरात्मा (inner sprite) से है. सत् आचरण (true manner) से है. मिथ्या व्यवहार (false behavior) या छलावा (illusion) ही अधर्म है और सत् व्यवहार (true behavior) ही धर्म है.
धर्म वह है जो इंसान को इंसान की तरह रहना सिखाये, सबसे सहानुभूति (sympathy) और परम का पाठ (lesson) पढाये. न केवल मनुष्य के प्रति बल्कि प्रत्येक छोटे-बड़े जीवों और समस्त (all) प्रक्रति के प्रति पवित्र कर्तव्य (sanctities) का बोध (sense) कराये. धर्म एक प्रकाश है जहाँ मिथ्याचार (hypocrisy/mischievous) टिक ही नहीं सकता. गलत काम अँधेरे में ही होता है.
सद्धर्म (उत्तम धर्म) में सिद्धान्ता (theories) और व्यवहार (behavior) दो नहीं होते. बस सदाचरण (good conduct) ही धर्म है. जो सत् (truth) पर आरूढ़ (strong) होते हैं, सदाचार उनका स्वभाव (nature) होता है. वे अलग से कुछ नहीं करते. सत् (truth) का प्रकाश प्रखर (strong) होता है, वहां कोई चीज छुप नहीं सकती. जिसका ह्रदय (heart) साफ होता है, वही इस पर चल सकता है. ' निर्मल मन जान सो मोहि पावा ..... ' परमात्मा (god) कहते है कि निर्मल मन (clear mind) वाले ही मुझे पा सकते हैं. यह परमात्मा अपनी आत्मा ही है, इसी का अनुसरण (pursuance) करना धर्म है, सदाचार है.
कुछ लोग सत् (truth) को भी घेरने का मिथ्या (illusion) प्रयास (try) करते हैं और अन्त (end) में पाते हैं कि सत् (truth) तो बाहर मुस्करा (smile) रहा है और उन्होंने मिथ्या (illusion) को ही बाँध रखा है. कुछ लोग इसे मंदिरों (temple), मस्जिदों (mosque), गुरुद्वारों में बांधते हैं, कुछ लोग नाना प्रकार की वेश-भूषा (dressing) और छापे-तिलक में बांधते हैं तो कुछ लोग रीति-रिवाज (customs and traditions) और अनेक प्रकार के कर्म-विधानों में.
सत् (truth) इस सबसे ऊपर है क्योंकि वह किसी पंथ (creed) या नियमों (rules) के अधीन (dependent) नहीं है. वह नियमों की कट्टरवादित (धार्मिक मतों का पालक/Fundamentalist) में नहीं है, सत् रूढ़ (unaccomplished) भी नहीं, बेजान भी नहीं. वह तो मर्मस्पर्शी (touching) है, जीवंत है, विकासमान (developer) है. सत् में जीवन जगमगाता है, चहकता है.
बंधुआ (bonded) या मुर्दा (dead) जीवन मिथ्या (illusory) का है, सत् का नहीं. सत् (truth) सबको आगे बढ़ने के लिए उत्साहित (excited) करता है, प्रेरित (inspire) करता है. जिस घेराबंदी (blockage) में दम घुटने लगे, जीवन दीप की लौ मद्धिम (dull) पड़ने लगे, उत्साह (excitement) मरने लगे, उसे तोड़कर बाहर आना सत् (truth) को गले लगाना है. जीवन बड़ा अनमोल (priceless) है, इसके एक-एक पल अनमोल हैं, इन्हें व्यर्थ (useless) न खोओ. सत् को पाने का हर प्रयास (effort) करो, वह मिलकर रहेगा. वह तो सच्चे जिज्ञासु पंथी (curious person) की प्रतीक्षा (wait) में सदा पलकें बिछाये राह देखता रहता है.
ऐसे सत् (truth) में चलना ही धर्म है. सत् को अपनाना ही सत्संग है. इस सत् को साथ लेकर चलने वाला प्रत्येक (everyone) इन्सान सत्संगी है . सत्संग कोई संप्रदाय विशेष (community) या पंथ (creed) नहीं है. कोई आदमी मन्दिर-मस्जिद जाता है या नहीं, योग-साधना, रोजा-नमाज करता है या नहीं, उसकी धार्मिकता (religiousness) इस बात से सिद्ध (determine) नहीं होती. उसकी धार्मिकता इस बात से सिद्ध होती है कि वह सत् (truth) कितना आचरण (conduct) करता है.
यदि हमने अपने दल (team) के लोगों तक ही अपने प्यार को रोके रखा तो सत् (truth) छुट गया, मिथ्या (illusion) बंध गया. यदि हमने धनिकों (rich) और विद्वानों का तो ख्याल किया और गरीबों और अनपढ़ों की उपेक्षा (ignore) की तो सत् (truth) को दूर फेंक दिया. यदि किसी को अछूत (untouchable) मानकर दूर हट गये तो सत् (truth) से ही दूर हट गये. जल (water), हवा (air), रोशनी (light), आकाश (sky) इन पर सबका समान अधिकार (authority) है, किसी को इससे वंचित (devoid) करना मिथ्याचार (hypocrisy/mischievous) है.
सत्य के विषय में अधिक बोले मत, बहस-विवाद भी न करें, सिर्फ अपने व्यवहार (behavior) को बोलने दो. सत्य व्यवहार (good behavior) सत् (truth) का प्रकाश है. इसे सिद्ध (prove) करने के लिये किसी प्रमाण (proof) की आवश्यकता नहीं क्योंकि सत्य, सत्य ही है, इसके समान कुछ भी नहीं.
इसे पढने के लिए किसी माध्यम (medium) की आवश्यकता (requirement) नहीं है. आत्मा (soul) इसे तत्काल (instantly) समझ जाती है. इसमें भाषा (language) या बोली भी बाधक (obstructive) नहीं. क्योंकि रूह (soul) को रूह से ज्ञान (intellect) होता है. आत्मा (soul) ही आत्मा को जानती है. ज्ञानी (sage) और ध्यानी (meditative) वह नहीं है जो घंटो समाधि (prayer) में बैठा रहे, बल्कि वह है जिसके व्यवहार (behavior) में सत् (truth) है, समता (coequality) है. सदाचारी व्यक्ति को सब में सत् (truth) का ही स्वरुप (form) दिखाई देता है.
सत्य को पढ़ भर लेना धर्म (religion) नहीं, न केवल सुन लेना धर्म है, धर्म का अर्थ (meaning) है सत्य पर आरूढ़ (strong) होना है. सत्य को जान लेने का अर्थ (meaning) है, उसे जीवन में उतार लेना, सत्य का स्वभाव (nature) बना लेना. इसकी खास पहचान है - व्यवहार में सादगी (simplicity), सरलता (ingenuity), निश्चलता (calmness) , मधुरता (sweetness).
यदि हमारे व्यवहार में सत् (truth) का प्रकाश नहीं उतारा, प्रेम का रस नहीं भरा और सादगी-सरलता की सुगंधी व्याप्त नहीं हुई तो हमारी साधना एक दिखावा मात्र बनकर रह गयी.
परिश्रम (struggle/hard work) तो किया, मगर चीज प्राप्त हुई. सत्य को पाने के लिये सत्य का आचरण (manner) करो. मन्दिर जाओ, न जाओ कोई बात नहीं, धुप-अगरबत्ती करो न करो, माला फेरो न फेरो, कोई बात नहीं, मगर सबके साथ सरल विश्चल प्रेम का व्यवहार अवश्य करो, किसी को अछूत (untouchable) या गरीब (poor) मानकर उसकी उपेक्षा (ignore) न करो. भीतर-बाहर से एक रहो.
किसी से मिथ्या वादा (lie promise) न करो. किसी बात को करने न करने की कसम मत खाओ. यह सब मिथ्याचार (hypocrisy/mischievous) है. महान पाप है. यदि ऐसा नहीं कर सको तो मौन (silent) रहो, अपनी ताबीज मत दिखाओ. किसी पंथ (creed/community) में नाम लिखा लेने मात्र से कोई सदाचारी (good-natured) नहीं बन जाता.
अपने को सत्संगी कहने कहलाने से बचो, डरो, कतराकर निकाल भागो क्योंकि अहंकार (ego) तुम्हारा पीछा कर रहा है. तुम मिथ्याचार (hypocrisy/mischievous) में पड़े रहो और तुम्हारे सिर पर 'सत्संगी' का सहरा बाँधने को दौड़ा आ रहा है. सावधान (alert) हो जाओ, साधारण आदमी (common man) बने रहो.
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